
इस प्रश्न का हमारा उत्तर केवल यह ही सुनिश्चित नहीं करेगा कि हम अपने जीवन में बाइबल और उसकी भूमिका को किस दृष्टि से देखते हैं, परन्तु अंततः वो हमारे उपर एक अनन्त प्रभाव भी डालेगा । अगर बाइबल सच में परमेश्वर का वचन है, तो हमें उसे संजोए रखना चाहिए, पढ़ना चाहिए, पालन करना चाहिए तथा अंततः उसपर भरोसा करना चाहिये । अगर बाइबल परमेश्वर का वचन है तो उसको खारिज कर देना परमेश्वर को खारिज कर देना है ।
यह वास्तविकता कि परमेश्वर ने हमें बाइबल दी, हमारे प्रति उसके प्रेम की गवाही तथा उदाहरण है । "प्रकटीकरण" (प्रकाशितवाक्य) शब्द का सरल अर्थ यह है कि परमेश्वर ने मानव जाति को यह प्रकट कराया कि वह कैसा है तथा हम कैसे उसके साथ सही संबंध रख सकते हैं । यह वो बातें हैं जो हमें नहीं मालूम चलती अगर परमेश्वर दैवी विधि से हम पर बाइबल में प्रत्यक्ष नहीं करता । हालांकि बाइबल में स्वयं ईश्वर का प्रकटीकरण प्रगतिशील रूप से लगभग १५०० वर्ष से अधिक दिया गया; उसमें वो सारी बातें रहीं जिनकी परमेश्वर के बारे में जानने के लिए मनुष्य को आवश्यकता थी, जिससे कि वो उसके साथ सही संबंध बना सके । अगर बाइबल सच में परमेश्वर का वचन है, तो फिर वो विश्वास, धार्मिक प्रथाओं तथा नैतिकताओं के सभी मामलों की एक निर्णायक अधिकारी हैं ।
हमें स्वयं से यह प्रश्न जरूर पूछना चाहिए कि हम कैसे जान सकते हैं कि बाइबल परमेश्वर का वचन है ना कि केवल एक अच्छी पुस्तक? बाइबल में ऐसी क्या विशेषता है जो उसे अब तक कि लिखी सारी धार्मिक पुस्तकों से अलग करती है? क्या कोई प्रमाण है कि सच में बाइबल परमेश्वर का वचन है? यह उस प्रकार के प्रश्न हैं जिनकी ओर देखना चाहिये अगर हम बाइबल के दावा को गंभीरतापूर्वक निरीक्षण करना चाहते हैं कि बाइबल ही परमेश्वर का सत्य वचन है, ईश्वरीय शक्ति से प्रेरित, तथा विश्वास और संस्कार के संबंध में पूर्ण रूप से पर्याप्त ।
इस वास्तविकता के विषय में कोई संदेह नहीं हो सकता कि बाइबल परमेश्वर ही का वचन होने का दावा करती है । यह स्पष्ट रूप से इन पदों में दिखाई देता है जैसे २तिमुथियुस ३:१५-१७ जो कहता है, "… और बालकपन से पवित्र शास्त्र तेरा जाना हुआ है, जो तुझे मसीह पर विश्वास करने से उद्धार प्राप्त करने के लिए बुद्धिमान बना सकता है । हर एक पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिए लाभदायक है । ताकि परमेश्वर का जन सिद्ध बने, और हर एक भले काम के लिए तत्पर हो जाए ।"
इन प्रश्नों का उत्तर देने के लिए हमें दोनों, भीतरी तथा बाहरी गवाहियों की ओर निश्चित रूप से देखना चाहिये कि बाइबल सच में परमेश्वर का वचन है । अन्दरूनी गवाहियाँ स्वयं बाइबल के अंदर की वो बातें हैं जो उसके ईश्वरीय मूल की गवाही देती है । बाइबल सच में परमेश्वर का वचन है के लिए पहली भीतरी गवाहियों में से एक उसके एकत्व में देखा जाता है । हाँलाकि यह वास्तव में छियासठ पुस्तकें हैं, जो तीन महाद्वीपों में लिखीं हैं, तीन भिन्न भाषाओं में, लगभग १५०० वर्षों से अधिक तथा ४० लेखकों से अधिक के द्वारा (जो कि जीवन के विभिन्न पेशों में से आए थे), लेकिन बाइबल आरंभ से समाप्ति तक बिना किसी विरोध के एक सी ही बनी रही है । यह एकत्व और अन्य पुस्तकों से बेजोड़ है तथा शब्दों के ईश्वरीय मूल का प्रमाण है, कि परमेश्वर ने इन्सानों को इस प्रकार से अभिप्रेरित करा कि उन्होंने उसके ही शब्द अभिलिखित किये ।
एक अन्य भीतरी गवाही जो संकेत देती है कि सच में बाइबल परमेश्वर का वचन है उन विस्तृत भविष्यवाणियों में देखा जाता है जो कि उसके पन्नों के भीतर हैं । बाइबल में सैकड़ों भविष्यवाणियाँ हैं जो कि इज़रायल समेत एकल देशों के भविष्य, कुछ नगरों के भविष्य, मानव-जाति के भविष्य, और उसके आने के लिये जो मसीहा होगा, केवल इज़राइल का ही उद्वारकर्ता नहीं अपितु उन सब का जो उसपर विश्वास करते हैं, से संबंधित है । अन्य धार्मिक पुस्तकों की भविष्यवाणियों से या जो नास्त्रेदेमुस के द्वारा की गईं, उनके विपरीत, बाइबल की भविष्यवाणियाँ अत्यंत विस्तृत है तथा कभी गलत (असत्य) नहीं पाई गई। केवल पुराने नियम में ही यीशु मसीह से संबंधित तीन सौ से भी अधिक भविष्यवाणियॉ हैं । ना केवल इस बात का पूर्वकथन किया गया था कि वो कहां जन्मेगा तथा किस परिवार से आयेगा, परन्तु यह भी कि वह कैसे मरेगा तथा तीसरे दिन फिर से जी उठेगा । बाइबल में पूरी हुई भविष्यवाणियों को ईश्वरीय मूल के द्वारा समझाने के अतिरिक्त और कोई तार्किक तरीका है ही नहीं । किसी अन्य धार्मिक पुस्तक में इस सीमा या प्रकार की भविष्यवाणी नहीं है जो कि बाइबल में हैं ।
बाइबल के ईश्वरीय मूल का होने की एक तीसरी गवाही उसके बेजोड़ अधिकार तथा शक्ति में है । हाँलाकि, यह गवाही पहली दो भीतरी गवाहियों से अधिक व्यक्तिगत है, परन्तु यह बाइबल के ईश्वरीय मूल के होने की शक्तिशाली प्रमाणों से कम नहीं है । बाइबल में एक बेजोड़ अधिकार (क्षमता) है जो अब तक लिखी गई किसी भी पुस्तक में नहीं है । इस अधिकार तथा शक्ति को सर्वोत्तम रूप में इस प्रकार देखा जाता है कि किस तरह से बाइबल का अध्ययन करने से अनगिनत लोग परिवर्तित हुए । नशीली दवाओं के व्यसनी इसके द्वारा चंगे हो गए, समलैंगिक व्यक्ति इसके द्वारा मुक्त हुए, बहिष्कृत तथा कंगाल लोग इसके द्वारा रूपांतरित किये गए, कड़े अपराधी इसके द्वारा सुधारे गए, पापी इसके द्वारा फटकारे गए, तथा घृणा इसको पढ़ने के द्वारा प्रेम में बदल गई । बाइबल में निश्चय ही एक ओजस्वी तथा रूपांतरण की शक्ति है जो कि केवल तब ही संभव है क्योंकि यह सच में परमेश्वर का वचन है ।
बाइबल सच में परमेश्वर का वचन है कि भीतरी गवाहियों के अतिरिक्त बाह्य गवाहियाँ भी है जो इस बात का संकेत देती है कि बाइबल सच में परमेश्वर का वचन है । उन में से एक गवाही बाइबल की ऐतिहासिकता है । क्योंकि बाइबल ऐतिहासिक घटनाओं का ब्योरा देती है इसलिए उसकी सत्यता तथा यर्थातता किसी अन्य ऐतिहासिक दस्तावेजों की तरह सत्यापन के अधीन है । पुरातात्विक प्रमाणों तथा अन्य लिखित दस्तावेज़ों, दोनों के द्वारा, बाइबल के ऐतिहासिक वृतांतों को समय-समय पर सत्य तथा सही होने के लिए प्रमाणित किया जाता रहा है । सत्य तो यह है कि बाइबल के समर्थन में सारे पुरातत्विक तथा हस्तलिखित प्रमाणों ने उसे पुरातन संसार की सर्वश्रेष्ठ दस्तावेजों से सिद्ध करी हुई पुस्तक बना दिया है । यह सत्य कि बाइबल ऐतिहासिक रूप से सत्यापित घटनाओं का सही तथा सत्यता से ब्यौरा रखती है उसकी सत्यता का एक बड़ा संकेत है जब धार्मिक विषयो तथा सिद्धांतों पर विचार किया जाता है तथा उसके दावे को प्रमाणित करने में सहायक है कि बाइबल ही परमेश्वर का वचन है ।
अन्य बाह्य गवाहियों कि बाइबल ही सच में परमेश्वर का वचन है, वो है उसके मानव लेखकों की निष्ठा । जैसा कि पहले उल्लेख किया जा चुका है, परमेश्वर ने हम तक अपने वचनों को अभिलिखित करने के लिए जीवन के विभिन्न पेशों से आये हुए मनुष्यों का उपयोग किया । इन मनुष्यों की जीवनियों का अध्ययन करने पर पता चलता है कि इस बात पर विश्वास करने का कोई भी ऐसा अच्छा कारण नहीं है कि वो ईमानदार तथा निष्ठावान नहीं थे । उनकी जीवनियों का निरीक्षण करते हुए तथा वो वास्तविकता कि जिस लक्ष्य पर वो भरोसा करते थे उसके लिए जान देने को भी तत्पर थे (प्रायः यंत्रणादायक मृत्यु), यह जल्दी ही स्पष्ट हो जाता है ये साधारण मगर ईमानदार मनुष्य सच में विश्वास करते थे कि परमेश्वर ने उनसे बातें करी है । जिन मनुष्यों ने नया नियम लिखा तथा कई अन्य सैकड़ों विश्वासी (१कुरिन्थियों १५:६) अपने संदेश के सत्य को जानते थे क्योंकि उन्होने यीशु मसीह को देखा तथा समय व्यतीत किया उसके मुर्दों में से जी उठने के पश्चात । जी उठे हुए मसीह को देखने के रूपांतरण का इन मनुष्यों पर जबरदस्त असर पड़ा । वे डर कर छिपने की जगह उस संदेश के लिए मरने को तैयार थे जो परमेश्वर ने उनपर प्रकट किया ।
उनके जीवन तथा मृत्यु इस सत्य को प्रमाणित करते है कि बाइबल सच में ही परमेश्वर का वचन है ।
एक अंतिम बाह्य गवाहियों कि बाइबल ही सच में परमेश्वर का वचन है वो है बाइबल का नष्ट ना हो पाना । उसके महत्व तथा पूर्णतया परमेश्वर के वचन के दावे के कारण, बाइबल ने इतिहास में किसी अन्य पुस्तक से बहुत अधिक बुरे आक्रमण तथा उसको नष्ट करने के प्रयास झेलें हैं । आरंभिक काल के रोमी सम्राटों जैसे डायोसीश्यिन से लेकर साम्यवादी तानाशाहों तथा आज के आधुनिक समय के नास्तिकों और अज्ञेयवादियों तक, बाइबल ने अपने सभी अक्रमणकारियों को झेला है तथा टिकने नहीं दिया तथा आज भी वो सारे संसार में सर्वाधिक प्रकाशित होने वाली पुस्तक है ।
सदा से, संशयवादियों ने बाइबल को काल्पनिक रूप में माना है, परन्तु पुरातत्व ने उसे ऐतिहासिक रूप में स्थापित किया है । विरोधियों ने उसकी शिक्षाओं को पुरातन तथा आदिकालीन कहकर आक्रमण किया, परन्तु उसकी नैतिक तथा विधिक धारणाएँ तथा शिक्षाओं ने सारे संसार में समाजों तथा संस्कृतियों पर अपना सकारात्मक प्रभाव छोड़ा है । विज्ञान, मनोविज्ञान तथा राजनीतिक आंदोलनों के द्वारा आज भी उसपर आक्रमण जारी है परन्तु अभी तक वो वैसी ही प्रामाणिक तथा प्रासंगिक जैसे कि पहले जब वो लिखी गई थी । यह वो पुस्तक है जिसने बीते २००० वर्षों में अनगिनत जिंदगियों तथा संस्कृतियों को परिवर्तित कर डाला है । इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि कैसे इसके विरोधी इसपर आक्रमण करने, इसको नष्ट करने, या इसको कलंकित करने का प्रयास करते हैं, परन्तु इन आक्रमणों के बाद भी बाइबल उतनी शक्तिशाली, उतनी ही सत्य तथा उतनी ही प्रासंगिक है जैसे वो पहले थी । उसकी शुद्धता जो आज तक सुरक्षित रखी गई है, उसको बदनाम करने, उसपर आक्रमण करने या उसको बरबाद करने के प्रयासों के बावजूद भी, इस सत्य का स्पष्ट प्रमाण है कि बाइबल सच में परमेश्वर का वचन है । हमें इस बात पर चकित नहीं होना चाहिये कि चाहें कैसे भी बाइबल पर आक्रमण किया गया हो, वो हमेशा अपरिवर्तित तथा सही-सलामत निकल आती है । आखिरकार यीशु ने कहा था, "आकाश और पृथ्वी टल जायेंगे, पर मेरी बातें कभी न टलेंगी" (मरकुस १३:३१) इस प्रमाण को देखने के बाद कोई भी संदेह के कह सकता है कि, "हाँ बाइबल सच में परमेश्वर का वचन है ।
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