
यह वास्तविकता कि पवित्र आत्मा परमेश्वर है कई आलेखों में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है जिसमें कि प्रेरितों के काम ५:३-४ भी सम्मिलित है । इस पद में पतरस हनन्याह का विरोध करता है कि उसने पवित्र आत्मा से झूठ क्यों बोला तथा उसे बताता है कि उसने 'मनुष्यों से नहीं परन्तु परमेश्वर से झूठ बोला ।" यह एक स्पष्ट घोषणा है कि पवित्र आत्मा से झूठ बोलना परमेश्वर से झूठ बोलना है । हम इसलिए भी जान सकते हैं कि पवित्र आत्मा परमेश्वर है क्योंकि उसमें परमेश्वर की विशेषतायें या चरित्रिक गुण है । उदाहरण के लिए यह वास्तविकता है कि पवित्र आत्मा सर्वव्यापी है भजन संहिता १३९:७-८ में देखने को मिलता है, " मैं तेरे आत्मा से भागकर किधर जाऊँ? वा तेरे सामने से किधर भागूँ? यदि मैं आकाश पर चढ़ू, तो तू वहाँ है ! यदि मैं अपना बिछौना आलोक में बिछाऊँ तो वहॉ भी तू है !" फिर १कुरिन्थियों २:१० में हम पवित्र आत्मा की सर्वज्ञता की विशेषता देखते हैं । "परन्तु परमेश्वर ने उनको अपने आत्मा के द्वारा हम पर प्रगट किया; क्योंकि आत्मा सब बातें, वरन परमेश्वर की गूढ़ बातें भी जांचता है । मनुष्य में से कौन किसी मनुष्य की बातें जानता है, केवल मनुष्य की आत्मा जो उस में है? वैसा ही परमेश्वर की बातें भी कोई नहीं जानता, केवल परमेश्वर का आत्मा ।"
हम यह जान सकते हैं कि पवित्र आत्मा निश्चय ही एक व्यक्ति है क्योंकि उसमें बुद्धि, भावनाऐं तथा इच्छा है । पवित्र आत्मा सोचता है तथा जानता है (१कुरिन्थियों २:१०) । पवित्र आत्मा दुखी हो सकता है (इफिसियों ४:३०) । आत्मा हमारे लिए मध्यस्थता करता है (रोमियो ८:२६-२७)। पवित्र आत्मा अपनी इच्छानुसार निणर्य लेता है (१कुरिन्थियों १२:७-११) । पवित्र आत्मा परमेश्वर है, त्रिएकत्व का तीसरा "व्यक्ति" । परमेश्वर के रूप में, पवित्र आत्मा एक सहायक के रूप में सही कार्य कर सकता है जैसा यीशु ने वचन दिया था (यूहन्ना १४:१६,२६;१५:२६)।
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